माँ कह दो उन्हें की और धमाके ना करे,
मैं अभी और जीना चाहता हूँ,
थोडी सी ही जी है ज़िन्दगी मैंने,
जीवन मधु को मैं अभी और पीना चाहता हूँ|
कल जयपुर में हुए थे और आज मुंबई में,
इन धमाको की आवाज भुलाना चाहता हूँ ,
इनके बाद इतना सन्नाटा जो छा जाता है,
की मैं अपनी ही आहट से घबरा जाता हूँ|
कल पड़ोस वाली मुनिया को देखा था मैंने,
गुलाबी फ्रोक्क खरीद कर लायी थी,
ना जाने कल क्या हुआ था चौराहे पर,
आज टीवी पर खून सनी वोही फ्रोक्क दिखायी थी|
माँ कह दो उनसे की और धमाके ना करे,
मैं और यह मंजर नहीं देखना चाहता हूँ,
उनकी भी तो एक बच्ची होगी मुनिया जैसी,
मैं उसे किसी ऐसे ही धमाके में नहीं खोना चाहता हूँ |
माँ वोह सब दिखते तो अपने जैसे ही है,
फ़िर ये सब क्यों बस मैं यह जानना चाहता हूँ,
आख़िर वोह भी तो अपने जैसे ही इंसान है,
बस ये ही याद उनको दिलाना चाहता हूँ |
चारो तरफ़ भय का मंजर फैला है,
लोग बिना डर जिये बस यही चाहता हूँ,
दहशतगर्दी से इंसानियत का उत्थान नहीं होगा,
इतना सा उनको समझाना चाहता हूँ|
माँ कह दो उन्हें की और धमाके ना करे,
मैं अभी और जीना चाहता हूँ,
थोडी सी ही जी है ज़िन्दगी मैंने,
जीवन मधु को मैं अभी और पीना चाहता हूँ|
- गजेंद्र "स्थिरप्रग्य" सिडाना-