अँधेरे की काल कोठरी को चीर
आसमान की तख़्ती को पोतने को
रोज तडके निकलता वो लाल गुबारा
सवेरे सुप्रभातम बजाता मंदिर का भोम्पु
और मिटी की सौंधी खुशबु में सराबोर
पीपनि से चूल्हा धुकाती घर की विधाता
बाड़े के खूंटे से बँधी जुगाली करती गाय
और रात भर की भूख से व्याकुल
उछल उछल घंटी हिलाता वो नटखट बछड़ा
रोज की भागमभाग मे जाने कहा खो गया सब
जागे है रात भर की दिन की लालिमा नज़र आती नहीं
टाइलो मे खो गयी है मिट्टी की महक कहीं
गाय की जगह दूध की थैली ने ले ली है
अँग्रेज़ी गानो की धुन मे मशगूल है सब
सुप्रभातम किसी को भाता नहीं है