वोह देखो चबूतरे पर खड़ी शर्मसार हक़ीक़त
नाकामी की चोट खा सिसकती हकीक़त
थक हार बोह्झिल हो खुद मे सिमटती हकीक़त
हो कर बेजार इस अपने नसीब की बेवफाई से
हक़ीक़ती मुकाम के लिए तरसती बेबस हकीक़त
अरमानो की बंद कोठरी मे पड़ी बदहवास हक़ीक़त
किस्मत के वहशी पिंजरे मे क़ैद हक़िक़त
रोजमरा की हाथापाई से लहुलुहान होती हक़िक़त
छुड़ा खुद को इस कुदरत के दरिंदे पंजे से
हक़िक़त बनने को मचलती हक़िक़त
- गजेंद्र "स्थिरप्रग्य" सिडाना