बस चंद लम्हे आराम और करने दो
तपती धूप से शाम होने दो
दिल मे जो ख्वाहिशे है बेतहाशा
कुछ ख्वाहिशे तो पूरी करने दो|
डरावना सा यह लंबा सफ़र है
मुसाफिर भी नहीं कोई साथ है
और काली घटा है फैली चारो ओर
पंख है थके और नयना भी हैरान है|
होठ चाहे कितना भी कहारयेगे
कुछ और दूर तो चले ही जाएगे
पागल परिंदे है हम आवारा
इन वादियो को पीछे छोड जाएगे||