Friday, January 15, 2010

खोया सवेरा

अँधेरे की काल कोठरी को चीर
आसमान की तख़्ती को पोतने को
रोज तडके निकलता वो लाल गुबारा
सवेरे सुप्रभातम बजाता मंदिर का भोम्पु
और मिटी की सौंधी खुशबु में सराबोर
पीपनि से चूल्हा धुकाती घर की विधाता
बाड़े के खूंटे से बँधी जुगाली करती गाय
और रात भर की भूख से व्याकुल
उछल उछल घंटी हिलाता वो नटखट बछड़ा
रोज की भागमभाग मे जाने कहा खो गया सब
जागे है रात भर की दिन की लालिमा नज़र आती नहीं
टाइलो मे खो गयी है मिट्टी की महक कहीं
गाय की जगह दूध की थैली ने ले ली है
अँग्रेज़ी गानो की धुन मे मशगूल है सब
सुप्रभातम किसी को भाता नहीं है