मुरझाये फूल कभी खिलते नहीं,
दूर से दीखते तो जरूर है
पर जमीन और आसमा कभी मिलते नहीं
बिखरे मोती से माला बनती नहीं,
खली प्यालों से मधुशाला चलती नहीं,
आंखों मैं तो सभी के रहते है
पर सिर्फ़ खवाबों से ज़िन्दगी चलती नहीं
पतझड़ में फूल खिलते नहीं,
बिन हवा पत्ते हिलते नहीं,
साथ में चलते तो है बहुत मुशाफिर
पर हमसफ़र क्यूँ राहो में मिलते नहीं|
- गजेंद्र "स्थिरप्रग्य" सिडाना