Monday, August 11, 2008

बिन कहे तू समझे हाल-ऐ-दिल तो क्या बात हो

डूबते तिनके को बस एक सहारा मिल जाए तो क्या बात हो,
भटकती इस लहर को किनारा मिल जाए तो क्या बात हो,
यू तो कमी नहीं है लोगों की यहाँ,
पर अनजानी भीड़ मे कोई हमारा मिल जाए तो क्या बात हो|

छितिज पर आसमा को समुद्र का छोर मिल जाए तो क्या बात हो,
और डूबते तनहा सूरज को कोई और मिल जाए तो क्या बात हो,
यु तो कमी नहीं है सितारों की यहाँ,
पर इस चकोर को अपना एक चंदा मिल जाए तो क्या बात हो|

अंधियारी ज़िन्दगी मे एक चिराग मिल जाए तो क्या बात हो,
नीरस बाग़ में एक गुल खिल जाए तो क्या बात हो,
यु तो कमी नहीं है दोस्तों की यहाँ,
पर एक आँचल का साया भी मिल जाए तो क्या बात हो|

जब तू पढ़े इसे और सुमझे मेरे दिल को तो क्या बात हो,
तेरा दिल भी धडके मेरे लिए तो क्या बात हो,
कहना तो बहुत कुछ चाहता हूँ तुझसे,
पर बिन कहे तू समझे हाल-ऐ-दिल तो क्या बात हो|


- गजेंद्र "स्थिरप्रग्य" सिडाना