Saturday, December 19, 2009

हक़ीक़त

वोह देखो चबूतरे पर खड़ी शर्मसार हक़ीक़त
नाकामी की चोट खा सिसकती हकीक़त
थक हार बोह्झिल हो खुद मे सिमटती हकीक़त
हो कर बेजार इस अपने नसीब की बेवफाई से
हक़ीक़ती मुकाम के लिए तरसती बेबस हकीक़त

अरमानो की बंद कोठरी मे पड़ी बदहवास हक़ीक़त
किस्मत के वहशी पिंजरे मे क़ैद हक़िक़त
रोजमरा की हाथापाई से लहुलुहान होती हक़िक़त
छुड़ा खुद को इस कुदरत के दरिंदे पंजे से
हक़िक़त बनने को मचलती हक़िक़त

- गजेंद्र "स्थिरप्रग्य" सिडाना