Wednesday, June 08, 2011

स्मृति

कतरा कतरा यू ही वक़्त गुजर जाएगा
बीता हर एक पल याद आएगा
चला था जिन रहो पर बदहवास
वो हर कदम स्मृति को विकल कर जाएगा|

विषैले काँटे भी थे खूब रहो पर
बेजान कंकर पथर भी थे भर कर
बंजारो में बस बेआलमी में दिल लगा लिया
और कई बार गिरा भी थक हार कर|

बहुत हसीं नज़ारे भी मिले
झीलमिल सितारे भी मिले
कोसो फैली तन्हाई में भी
कुछ दूर हमदम प्यारे मिले

पर कुछ दूर तो चले आये है
शायद कुछ ही दूर और जाना है
मीलो चल चुका हूँ बेमानी रहो पर
अब तो बस मंज़िल को पाना है|